हरिचन्द जी नांगरू एक व्यक्तित्व
जो जीवन भर अनुकरनीय रहा उसकी मधुर समृतियाँ जब-जब मन में आती है तब-तब एक नया प्रकाश दीप जल उठता है क्योकि वे अपने जीवन काल में किसी एक क्षेत्र से नहीं जुड़े रहे उनका कार्य क्षेत्र सिमित नहीं रहा । एक बात उनके जीवन का दृढ़ सकल्प रही की उन्होंने जो कुछ भी किया समाज के लिए किया । अपने लिए या अपने परिवार जनो के लिए नहीं । ऐसा व्यक्ति आज के युग में कुछ अटपटा सा दिखाई देता है । लेकिन यह एक अटल वास्तविकता है । की उन्होने जिस भी समाज में सेवा क्षेत्र में कदम रखा उसका सम्पूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया । ऐसे महापुरषो की यदि किसी एक देवता से तुलना की जाये तो यह शायद अतिश्योकित नहीं होगी । उन्होंने जीवन में कर्म क्षेत्र को प्रधान माना । ऐसे व्यक्ति के जीवन के बारे में लिख़ते हुए मुझे गौरव महसूस हो रहा है ।
श्री हरिचंद नांगरू जी का जन्म जिला मुल्तान में सन १९२६ में सोभागए शालो पिता श्री फ्खोर चन्द जी एवं माता श्रीमती आसी बाई जी के घर में हुआ । अपना बाल्यकाल जालवाला जिला मुल्तान में व्यतीत किया और प्रारम्बिक शिक्षा भी वही पर ग्रहण की तथा मुल्तान से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की । अपने बाल्यकाल में ही यह समाज सेवा की और आकर्षित हुए । इनके पिता श्री फ़क़ीर चन्द जी एक जमींदार थे किसी प्रकार की धन धान्य की कोई कमी नहीं थी । इनके पिता स्वय उदार निति के थे । गरीबो की सहायता किया करते थे । समाज सेवा में तल्लीन रहा करते थे और यही सब कुछ विरासत में ग्रहण किया अपने पिता श्री से कहते है की पुत्र कपुत्र और सुपुत्र तीन तरह की सन्ताने होती है । जो आपने माता पिता की विरासत को संभाल के उसी प्रकार रखे वह पुत्र माने जाते है, विरासत में मिली सोहरत और परसिद्धि को गवां बैठे वह कुपुत्र माने जाते है ।
लकिन जो अपने पिता से प्राप्त सम्पति परसिद्धि धन धान्य को बढ़ाकर समाज में पर्तिष्ठा प्राप्त करके अपने पिता एव पूर्वजो के सम्मान को समाज में सम्मान्निये बनाएं वह सपुत्र जाने जाते है । श्री हरिचंद जी नांगरू ने विरासत में मिली सेवा भाव गरीबो की मदद करने, निरीक्षता दूर करने में, धार्मिक क्षेत्र में ईश्वर के प्रति निष्ठा इत्यादि गुण जो अपने पिता श्री से पाए उन्हें अपने जीवन काल में कही कम नहीं होने दिया अपितु उन्हें कई गुना बढ़ाकर और अपने पिता श्री फ़क़ीर चन्द जी का नाम सदा के लिए अमर दिया ।
सन १९४७ में जब देश कब बटवारा हुआ तो उससे पहले उनके पिता श्री फ़क़ीर चन्द जी स्वर्ग सिधार चुके थे । उस समय इनकी आयु केवल २१ वर्ष की थी । अपनी २१ वर्ष की आयु में पाकिस्तान से भारत लौटते समय भी इनकी समाज सेवा में कोई कमी नहीं आई जहा तक सम्भव हो पाया अपने गांव वासियो एव हिन्दू सिक्ख परिवारों को संरक्षण देकर हिंदुस्तान पहुंचे और वह समय भी इनकी जीवन की यादगिरी बन कर रह गयी की जब सारा धन दौलत पाकिस्तान में छोड़कर केवल अपने साथ अपनी पर्तिष्ठा एव समाज सेवा के दृढ़ स्कल्प को मन में लिए हुए आजाद भारत की जमीन पर कदम रखा और सोनीपत में आकर बस गए ।

सोनीपत से करनाल और करनाल से बिधियाणा बिधियाणा से भारत की राजधानी दिल्ली, दिल्ली से भोपाल तक १२ वर्ष लगातार आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने हेतू परस्पर प्रेम की भावना को जागृत करने हेतू धर्म प्रचार हेतू और बिना किसी भेदभाव के गरीबो की सहायता हेतू ब्रह्मण किया १९६५ की होली जो की इनहोने भोपाल में मनाई वह लीला पुर्षोतम भगवान श्री कृष्ण के चरणों में नत्मस्तक हो कर होली का पर्व मानते जहा गुलाल एव रंगो की बौछार के साथ रंग बाटने की बजाए गरीबो धन बाँटते रहे । क्योकि मन में धन संचय की भावना नहीं थी । धन केवल आवश्यकता को पूरा करने के लिए ही प्रयोग किया करते थे और अतिरिक्त धन गरीबो की सहायता हेतू वितरित कर दिया करते थे । श्री नांगरू जी सम्बन्ध विधाता ने पानीपत से जोड़ दिया क्योकि माननीय श्री टेकचंद जी हुड़िया की प्रेरणा से इन्होने पानीपत को भी अपने सेवा क्षेत्र में लें लिया । १९५२ में नांगरू जी की माता श्री मति आसी जी का देहांत हो गया । भोपाल रहते हुए भी पानीपत में स्थित महावीर मंदिर वार्ड नम्बर ११ में भी धन और मन से सम्पूर्ण किया करते थे ।
पानीपत की जनता का इनके प्रति अपार विश्वास अटूट प्रेम इन्हे सं १९६५ में भो[पल से आकर्षित करके पानीपत ले आया और तभी से उन्होंने समर्पित कर दिया पानीपत की जनता को और वार्ड और वार्ड नंबर ११ में ही रह कर ही श्री महावीर मंदिर के निर्णय में लग गए । क्योकि उस समय ११ वार्ड क्षेत्र पिछड़ा हुहा क्षेत्र माना जाता था । शिक्षा के नाम पर कोई विद्यालय नहीं था चारो और गंदगी के ढेर लगे रहते थे । यह सब देख कर श्री नांगरू जी कैसे बर्दाश्त कर सकते थे । उनके मन में एक नई उमंग उठी की वह इस क्षेत्र के पिछड़े हुए बच्चों के जीवन में शिक्षा की नई ज्योति प्राजबलित करेंगे और जब यह दृढ़ संकल्प कर लिया तो उदेश्य प्राप्ति से पूर्व चेन से नहीं से बैठे । क्षेत्र के कुछ लोगो को एकत्रित किया और उन्हें उत्साहित किया की विद्यालय की क्या आवश्यक्ता है ?
पुरे क्षेत्र ने इनका हृदय से पूर्ण सहयोग दिया की वह शिक्षा का कोई दीप जलाकर उनके अंधकार मए जीवन को प्रकाश मए बनाये । उस समय स्थान का आभाव होने के कारण दोपन बड़े पीपल के वृक्षों के निचे कार्य प्रारंभ किया । “श्री महावीर आदर्श विद्यालय” ८ अप्रैल १९६६ में शिक्षा का प्रथम चरण प्रारंभ हुआ जिसमे प्रथम अध्यापक के तोर पर शिक्षा की सेवा श्री रामलाल जी सुमन ने संभाली । ये श्री नांगरू जी की ही विशेषता थी की उन्होंने ऐसे अध्यापक श्री रमलाल जी सुमन का चयन किया जो जीवन भर उन्ही के हो गए और पूरा जीवन समर्पित कर दिया शिक्षा क्षेत्र में आज वही अध्यापक श्री “महावीर आदर्श मिडिल स्कूल मुखयध्यापक के पद पर सुशोभित है । सन १९६६ से लेकर २८ फरवरी १९९१ तक पूरा जीवन काल वे श्री नांगरू जी प्रधान पद पर एव संरक्षक के पद पर सुशोभित रहे और १९६६ से १९९१ तक २५ वर्षो के अंतकाल में जो विद्यालय की रुपरेखा में जो परिवर्तन किया वह आज जग जान्या है । वह पीपवृक्षल के वृक्ष के निचे एक विद्यालय आज १३००० वर्ग कज के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसके ख्याति पानीपत में ही नहीं पुरे हरियाणा क्षेत्र में फैली हुई ह इसे विद्यालय के मुख्याध्यापक श्री राम लाल सुमन हरियाणा अमान्यप्राप्त विद्यालय संग (रजि) के प्रदेश कोषाध्यक्ष नियुक्त हुए है । यह सारा श्रेय श्री नांगरू जी की सूज भुज उनका मार्गदर्शन इस विद्यालय को इस उच्च स्तर पर ला सका।
श्री नांगरू जी ने बड़ी सूज बुझ के साथ स्कूल की प्रबंधक कमेटी समिति में ऐसे सदस्यों का चयन किया जो विद्यालय को अग्रणी पक्ति में लाने के लिए सदैव तत्पर रहते है । श्री गणेश दस पपरेजा, श्री शांति लाल जी, विन्द्र उपप्रधान श्री मदन लाल एचपुण्यानि सचिव तथा परमानन्द जी कोषाध्यक्ष श्री बनवारी लाल, मुसाफिर श्री सतनाम मिगलानी, श्री कृष्ण लाल जसूजा, श्री चन्दरबान हुडिया, श्री रघुनन्दन सवरूप गुप्ता एव अनेक अन्य सदस्यों ने इन्हे पूर्ण सेहोग दिया । श्री नांगरू जी कार्ये क्षेत्र कोई सिमित नहीं रहा अपितु हर क्षेत्र में उन्होंने अपना भरपूर योगदान दिय दिया चाहे वह संकट देश पर आया हो या संकट धर्म पर आया हो या समाज पर आया हो वह सर्वदा तत्पर रहते थे । १९६६ में गोहत्या सत्य ग्रह में दिल्ली संसद भवन के समक्ष पहुंचकर धरना दिया एक गोबन्द को बंद करवाने हेतु पूर्ण योगदान दिया । उपरान्त १९७२ में बांग्ला देश के स्व्तंत्रता सन्ग्राम की लाखों की संख्या में शरणार्तिं भारत आ पहुंचे । z उन शरणार्थियो को भी भाइयो की तरह गले लगाया और उनके भोजन एव वस्त्र इत्यादि का समुचित प्रबंध कराया १९७६ में पानीपत के निकटवर्ती जलपान व् भोजन को समुचित व्यवस्था करके यह सिद्ध कर दिया की वास्तव में वे किसानो की प्रति कितने आकर्षित थे ।
श्री नांगरू जी शिक्षा क्षेत्र में ही नहीं धर्म क्षेत्र में भी ईश्वर के प्रति समर्पित रहे आज श्री महावीर मंदिर वार्ड ११ का भव्य भवन उनकी सेवावो की मधुर समृति लिए हुए समाज को समर्पित है । ईश्वर ने उन्हें इतनी शक्ति प्रदान की कि वह अपने क्षेत्र ें एक कदम और आगे हरी के चरणों में हरिद्वार जा पहुंचे । पानीपत निवास रखते हुए भी हरिद्वार में” मुल्तान भवन ” नाम के मंदिर एव धर्मशाला का निर्माण १९८२ में प्रारंभ करवा दिया और मुल्तान वेलफेयर सोसईटी के उपप्रधान पद पर सुशोभित रहे । विधि का विधान देखिये अपने जीवन काल के अंतिम दिनों में श्री नांगरू जी चल पड़े हरिद्वार कि और और निर्माणाधीन मुल्तान भवन एव धर्मशाला का लेंटर डलवाने के लिए लगातार १४ दिन हरिद्वार में रहे I इस पुण्य करम में तलहीन रहकर वे भूल गए कि उनका जीवन काल अब अंतिम क्षणो में है और ईश्वर के चरणों में समर्पित हो कर मुल्तान भवन के कार्ये को सम्पन किया । कार्ये सम्पन करने के उपरान्त २८ फरवरी १९९१ को पानीपत अपने निवास स्थान पर मॉडल टाउन पहुंचे । हरिद्वार कि यह यात्रा उनकी एक अंतिम यात्रा बन कर रह गयी । शायद ईश्वर ने यह जानकर उन्हें हरिद्वार बुलाया कि जिसने सारा जीवन ईश्वर सेवा में समर्पित किया उसके अंतिम क्षण प्रभु चरणों में ही व्यतीत होने चाहिये और ऐसा हुआ भी । जब पानीपत पहुँचकर रात्रि भोजन करने के उपरान्त ईश्वर चरणों में नतमस्तक हो कर अपने प्राण त्याग दिए । यह एक ऐसे महान व्यक्तित्व कि गाथा है जो एक प्रकाश स्तम्ब बनाकर आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दर्शन देता रहेगा ।
दुनिया में चाँद बनकर चमकते रहे । जिनके इतने गुण है की जैसे को तल पर पड़े हुए हीरे मोती जवहारत गिने नहीं जा सकते ठीक उसे प्रकार इस महान विभूति के गुण शब्दो द्वारा वर्णन नहीं किये जा सके । श्री नांगरू जी अपने परिवार में चार सुपुत्र स्वम श्री सुरेश जी नांगरू, विजय नांगरू, तमिंदर नांगरू गुरवेश नांगरू धर्मपत्नी श्री दयावंती नांगरू भाई श्री विद्यासागर नांगरू को अपनी विरासत में इतने विशाल गुणों का भंडार देकर गए है जो पीडीओ तक इस परिवार की शाने शौकत को कायम रखेगा I मेरी नन्ही से कलम ने प्रयत्न किया है।